उत्तराखण्ड का नदी तंत्र में अधिकांश नदियाँ ऋतुगामी प्रवाह से सम्बधित न होकर पूर्वगामी प्रवाह से सम्बधित है। जिनमें मुख्य हैं- गंगा तंत्र, यमुना तंत्र तथा काली तंत्र
भागीरथी-अलकनन्दा जल प्रवाह तंत्र
इस प्रवाह क्षेत्र के अंतगर्त उत्तराकशी जनपद के पश्चिमी भाग को छोड़कर सम्पूर्ण गढ़वाल, रूद्रप्रयाग चमोली तथा अल्मोड़ा जनपद के पश्चिमी क्षेत्र सम्मिलित है। वस्तुतः भागीरथी और अलकनंदा, महान हिमालय की चौखंबा शिखर विपरीत डालो से उद्गमित है। अलकनंदा, भारत की प्रमुख सहायक नदी है तथा भागीरथी से लम्बा प्रवाहपथ बनाती है।
अलक (घुंघराले बाल) तथा नंदा (पुत्री) हिमालय की चोटियों के जटा में स्वरूप से टपकती जल धाराओं से निर्मित अलकनंदा, जिसे प्राचीन ग्रंथों में विष्णु गंगा कहां गया है, अलकापुरी बाँक ग्लेशियर ( 6067 मीटर) से निकलती है। वसुधारा प्रपात (112 मीटर ऊंचा) इसी आदि नदी अलकनंदा पर है। संस्कृत क्षीर सागर (सतोपंथ) भी बद्रीनाथ से 25 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी पर ही है। बद्रीनाथ धाम से लगभग 4 किमी दूर अंतिम भारतीय सीमांत गांव माणा के पास रत्ताकोना नामक स्थान पर स्थित देवताल से निःसृत सरस्वती, केशव प्रयाग में अलकनन्दा नदी से सगंम बनाती है। । ऋषि गंगा तथा अलकनंदा के संगम पर बद्रीनाथपुरी स्थित है। धौलीगंगा, नीति क्षेत्र में धौलागिरी पर्वत की कुनलुग श्रेणी से निकलकर विष्णुप्रयाग में अलकनन्दा नदी में मिल जाती है। चमोली( अलकापुरी) से 21 किमी पहले बालखिल्य नदी तुंगनाथ रुद्रनाथ 30 श्रेणियों से निकलकर अलकनंदा में समा जाती है। आगे चलकर बिराई गंगा पातालगंगा वह गरुड़ गंगा अलकनंदा में सम्मिलित हो जाती है। नंदाकिनी त्रिशूल पर्वत से निकलकर पूर्वी पश्चिमी प्रवाहपथ बनाती हुई नंदप्रयाग में अलकनंदा से सगंम बनाती है। पिंडर नदी (कर्णगंगा) बागेश्वर जनपद में पिंडारी पिण्डारी बाँक (ग्लेशियर) से निकलकर दक्षिणी पूर्वी प्रवाहपथ बनाती हुई कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी में मिल जाती है।
दूधातोली पर्वत के उत्तरी ढाल से निकलने वाली अट्टागाड पिण्डर की प्रमुख सहायक नदी है। मन्दाकिनी, केदार-हिमालय के दक्षिणी-पश्चिमी ढाल की मन्दराचल श्रेणी से निकलकर रूद्रप्रयाग में अलकनन्दा से संगम बनाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी मधुगंगा, मद्मेहश्वर क्षेत्र से निकलकर गुप्तकाशी से नीचे कालीमठ मार्ग के पास मन्दाकिनी में मिल जाती है। अलकनन्दा के सम्पूर्ण प्रवाहपथ की अन्य उल्लेखनीय नदियों में वसुधारा, कंचनगंगा, क्षीरगंगा, पुष्पावती, हेमगंगा या लक्ष्मण गंगा, भ्यूंडार गंगा(कवन गंगा), अमृतगंगा, सोनधारा, चन्द्रधारा तथा हिमलों नदी प्रमुख है।
भारत की सर्वश्रेष्ठ व पवित्रतम नदी गंगा का आदि का उद्गम स्थान, गंगोत्री से लगभग 20 किमी- उत्तरपूर्व की ओर गोमुख है। गंगोत्री ग्लेशियर से इसकी उत्पत्ति हुई है। पौराणिक आधार पर राजा भगीरथ के अथक प्रयास से गंगा पृथ्वी के कल्याण हेतु स्वर्ग से अवतरित हुई है। अपने उद्गम स्थान से देवप्रयाग तक गंगा नदी राजा भगीरथ के नाम से भागीरथी नदी कही जाती है। 4050 मी0 की ऊँचाई पर स्थित केदार ताल से निःसृत केदारगंगा, टकनौर मल्ला के थामला दर्रे के पास हिमनद से निकलने वाली तथा भैरोंघाटी से संगम बनाने वाली असीगंगा तथा रूद्रगेरा हिमनद से निकलकर गंगोत्री के पास संगम बनाने वाली रूद्रगंगा, भिलंगना के संगम से पूर्व भागीरथी की सहायक नदियां है। बूढ़ाकेदार तीर्थ के निकट परस्पर समाहित होने वाली बालगंगा तथा धर्मगंगा की जलराशि प्राप्त करने वाली भिलंगना नदी, जो टिहरी बाँध के निर्माण से पूर्व तक भागीरथी की प्रमुख सहायक नदी थी, गंगोत्री हिमनद के दक्षिणी-पश्चिमी ढाल खतलिंग ग्लेशियर से निकलती है। इन दोनों नदियों का संगमस्थल, गणेशप्रयाग, टिहरी नगर के निकट था। इन दोनों स्थानों का अस्तित्व टिहरी बाँध परियोजना के पूर्ण होने के साथ ही समाप्त हो गया है। बाँध से निकलकर भागीरथी की नियन्त्रित जलधारा पूर्व की भांति देवप्रयाग में अलकनन्दा से संगम बनाती है तथा गंगा कहलाती है किन्तु केदारखण्ड पुराण के अनुसार हरिद्वार को गंगाद्वार माना गया है, अर्थात् हरिद्वार से ही भागीरथी को गंगा नाम दिया गया है।
देवप्रयाग से आगे गढ़वाल जनपद की प्रमुख नयार नदी (पौराणिक नाम नवालका) दो जलधाराओं, पूर्वी नयार तथा पश्चिमी नयार नदियों की संयुक्त धारा है। पूर्वी नयार नदी दूधातोली पर्वत श्रृंखला की जखमोलीधार श्रेणी से निकलकर प्रारम्भिक अवस्था में स्यूंसी या कैन्यूर गाड़ कहलाती है। दक्षिणी पश्चिमी प्रवाहपथ बनाती हुई यह नदी बैजरौ के पास पश्चिमी मोड़ लेती है। रीठाखाल के पास उत्तर की ओर बहती हुई पुनः दक्षिण-पश्चिमी दिशा में मुड़कर सतपुली के पास नौगांव कमंदा नामक स्थान पर पश्चिमी नयार नदी से संगम बनाती है।
पश्चिमी नयार नदी की उत्तरी शाखा (स्योली गाड़ दूधातोली श्रृंखला के उत्तरी-पश्चिमी ढाल से निकलकर, उत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम मार्ग से पैठाणी के पास, दक्षिणी मुख्य शाखा ढाईज्यूलीगाड में मिल जाती है। प्रारम्भिक अवस्था में इस नदी का नाम ढाईज्यूलीगाड ही है। मूसागली से चिफलघाट तक यह नदी अत्यन्त सकंरी घाटी में बहती है। पूर्वी नयार नदी में मिलने से पूर्व ज्वाल्पादेवी के निकट यह उत्तरी-पश्चिमी दिशा में प्रवाहित होती है। पश्चिमी नयार नदी का जलगाम क्षेत्र 21 प्रमुख जलागम क्षेत्रों से निर्मित है।
प्राचीनकाल में दोनो नयार नदियों के संगम स्थल को वैनतेयक तीर्थ कहा जाता था। यहीं से बद्रीनाथ धाम पहुँचने के लिए कर्णप्रयाग तथा आदि बदरी होकर दो पैदल मार्ग थे। यह तीर्थ नयार नदी का सिंहद्वार था।
पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों नयार नदियों के संगम के पश्चात नयार (नारदगंगा तथा इन्द्रावती के नाम प्रवाहमान यह नदी, उत्तरी-पश्चिमी दिशा में अनेक सर्पिल मोड़ बनाती हुई, ऋषिकेश से पहले व्यासघाट (भास्कर क्षेत्र या इन्द्रप्रयाग) के पास फुलचट्टी नामक स्थान पर गंगा में मिल जाती है। पौराणिक ग्रन्थों में इस नदी को साणी कुश जीर्णां तथा खीर गंगा भी कहा गया है। इसके दायीं तथा बायीं और छः लघु जलागम क्षेत्र हैं। केदारखण्ड के अनुसार भागीरथी-अलकनन्दा प्रवाहतंत्र की यह सातो नदियां- अलकनन्दा, धौली, नन्दाकिनी, पिण्डर, मन्दाकिनी, भागीरथी तथा नयार सप्त सामुद्रिक स्त्रोत कहलाती है तथा गंगा का यह जलागम क्षेत्र सप्त सामुद्रिक तीर्थ कहलाता है।
यमुना टोंस जल प्रवाह तंत्र
पौराणिक गाथाओं में यमुना, यमराज की भगिनी, सूर्य की पुत्री और भगवान श्री कृष्ण की पटरानियों में कालिंदी के नाम से प्रसिद्ध है। इस जल प्रवाह क्षेत्र में यमुना तथा टोंस दो प्रमुख नदियां है। यमुना का उद्गम स्थान यमुनोत्री बाँक (ग्लेशियर)है, जो उत्तरकाशी जनपद में बंदरपूंछ हिमालय की तीसरी चोटी के दक्षिणी- पश्चिमी भाग में स्थित है। इसकी छोटी वेणी, हनुमान गंगा, खरसाली के पास यमुना में विलीन हो जाती है। यमुना की सबसे मुख्य सहायक नदी टोंस है, जो बंदरपूंछ के उतरी ढाल पर स्वर्गारोहिणी हिमनद से निकलने वाली सुपिन तथा डोडरा क्वार हिमाचल क्षेत्र से आने वाली रूपिन के संगम के पश्चात तमसा नदी के नाम से प्रसिद्ध है। यह नदी हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे आराकोट, बगाण व चकाराता की पहाड़ियों से होते हुए कालसी (देहरादून) में आकर जमुना में मिल जाती है। 160 किमी लम्बी यह नदी यमुना से ढाई गुना अधिक जल लाकर इसकी जलराशि तिगुना कर देती है। पर्वतीय तथा पछवा दून क्षेत्र में यमुना की अन्य सहायक नदियों में ऋषि गंगा, हनुमान गंगा, बनाड़गाड, कमलगाड, रिखगाड, खुतनूगाड, अगलारगाड, अमलावागाड, कृष्णागाड, बरनीगाड, भद्रीगाड, पुज्यारगाड, नगाणगाड, गडोलीगाड तथा मुगरागाड प्रमुख है।
लगभग 175 किमी. का प्रवाहपथ पूर्णकर, यमुना नदी दूनघाटी में प्रवेश करती है। इस क्षेत्र में यमुना की प्रमुख सहायक नदी आसन है, जो आशारोड़ी-देहरा मार्ग के पश्चिम से निकलकर अपने उद्गम स्थान से 40 किमी. प्रवाहित होकर रामपुर मण्डी के पास यमुना में मिल जाती है। यमुना नदी शिवालिक पहाड़ियों की घाटियों में प्रवाहित होकर बादशाही महल हरिद्वार जनपद के पास मैदानी भाग में प्रवेश कर जाती है।
काली जल प्रवाह तंत्र
काली का जलप्रवाह तंत्र पूर्णतया कुमाऊं मंडल में स्थित है। स्थानीय रूप से काला पानी गाड नाम होने के कारण इसका नाम काली गंगा पड़ गया है। यह नदी अपने उद्गम काला पानी (व्यास ऋषि आश्रम) से निकलकर काका गिरी पर्वत के समानांतर बहती हुई भारत और नेपाल की सीमा रेखा बनाती है। पौराणिक रूप से इसका जल पवित्र नहीं माना जाता है। स्कंद पुराण के मानस खंड में काली नदी को श्यामा कहा गया है। काली गंगा का पूरा प्रभाव पर एक लंबाकार घाटी के रूप में है, यह नदी कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ तथा चंपावत एवं नैनीताल जनपद के पूर्वी भाग का जल संग्रह करती है। इसके मुख्स स्त्रोत कालापानी गाड और कुठीयाँग्टी नदियाँ है, जो क्रमशः जैंक्सर श्रेणियों के पूर्वी तथा पश्चिमी ढालों से निकलती है। संगचुम्ना, निकुट तथा थुमका, कुठीयाँग्टी की सहायक नदियाँ है।
पूर्वी धौलीगंगा की दो मुख्य जल स्रोत है, धौली या दारमा तथा लिस्सर। तिजांग में इन दोनों का संगम है। लिस्सर नदी , धौली से 2-3 गुना बड़ी है। धौली गंगा, स्यालपंथ के पास खेला नामक स्थान पर काली नदी से संगम बनाती है। नानदारमा, सेलायाँग्टी, कंचुतिच, धौली की सहायक नदी है।
गोरी गंगा, जो पिथौरागढ़ के मल्लाह जोहार क्षेत्र में मिलम ग्लेशियर से निकलती है, दो जलधाराओं, गोरी तथा शुनकल्पा या रालम नदियों की संयुक्त धारा है। जिमगाँग, समगाँग तथा डुंग क्षेत्रों में चौड़े फाट बनाती हुई गोरीगंगा, जौलजीवी के पास काली नदी से सगंम बनाती है। रलमगाड, मदकानी, जिम्बा गधेरा तथा गोन्खा गाड, गोरीगंगा की सहायक नदियाँ है।
काली नदी को सबसे अधिक जलराशि देने वाली कुमाऊं की पवित्रतम नदी सरयू का उद्गम, बागेश्वर जनपद की दक्षिण पश्चिमी पहाड़ियों से है। बागेश्वर तीर्थ में सरयू से संगम बनाने वाली गोमती नदी, डेबरा श्रेणी से निकलती है। सरयू की दूसरी प्रमुख सहायक नदी, पूर्वी रामगंगा, पिथौरागढ़ जनपद में पोंटिंग तथा हिमानी से निकलकर रामेश्वर तीर्थ के पास सरयू में मिल जाती है। भुजपत्री गाड, गरगतिया, कालापानी गाड तथा बेरल गाड इसकी सहायक नदियाँ है। रामेश्वर से 3 किलोमीटर पहले काकरीघाट से मिलने वाली नदी पनार है। यहां से 28 किमी. का दक्षिणी-पूर्वी प्रवाहपथ बनाती हुई सरयू, पंचेश्वर से 40 किमी. नीचे कालीगंगा से संगम बनाती है। चूका के पास कालीगंगा में मिलने वाली लधिया नदी, भारतीय क्षेत्र से काली में समाहित होने वाली दक्षिणी क्षेत्र की अन्तिम नदी है, जो देवीधुरा के दक्षिण-पश्चिम में पिथौरागढ़, अल्मोड़ा तथा नैनीताल जनपदों के मिलन बिन्दु, गजार से निकलती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी क्वाइराइला है। चूका से टनकपुर तका कालीगंगा कई दिशाओं में प्रवाहित होती हुई पूर्णागिरी तीर्थ के पास प्रदेश के पाद-प्रदेश को छोड़कर शारदा नदी के नाम से मैदानी क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है।
अन्य नदियां
भागीरथी अलकनंदा प्रवाह तंत्र, यमुना टोंस जलवा प्रवाह तंत्र तथा काली जल प्रवाह तंत्र के अतिरिक्त कुछ अन्य नदियां भी राज्य में प्रमुख स्थान रखती है-
रामगंगा नदी
यह नदी गढ़वाल जिले के दूधातोली पर्वत श्रृंखला के पूर्वी ढाल से निकलकर कुमाऊँ के पास लोहबा चौखटिया (अल्मोड़ा) क्षेत्रों में बहती हुई कालागढ़ (पोड़ी गढ़वाल) के पास भाबर में प्रवेश करती है, जहां पर कालागढ़ बाँध तथा जल विद्युत उत्पादन संयत्र बनाया गया है। यहां से मुरादाबाद होती हुई यह नदी कन्नौज के पास गंगा में मिल जाती है।
खोह नदी
यह नदी गढ़वाल की पट्टी लंगूर से आने वाली लंगूरगाड तथा पट्टी सीला से प्रवाहमान सिलगाड के संगम के पश्चात् दुगड्डा से आगे खोह नदी के नाम से कोटद्वार होती हुई धामपुर के पास गंगा में मिल जाती है। कोटद्वार से आगे भाबर के बलुआ पत्थर एवं मोटे कणों वाली पट्टी में यह नदी भूमिगत होकर बहती है, सम्भवतः इसी कारण इसका नाम ’खो’ लुप्त पड़ गया।
कोसी नदी
स्थानीय लोगों में कोशिला के नाम से प्रचलित यह नदी अल्मोड़ा जिले के बारामंडल और परगने की धारपानी धार से निकलकर रामनगर से मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है तथा उत्तर प्रदेश में रामपुर के पास रामगंगा नदी में मिल जाती है। इसके कुमाऊनी प्रभाव क्षेत्र में गेहूं तथा धान की फसलें लहलहाती हैं । कोसी की प्रमुख सहायक नदियां है देवगाड, मिनोलगाड तथा सिमोलगाड हैं।
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