उत्तराखण्ड की भौगोलिक संरचना

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भौगोलिक सीमाएं
  • तेलंगाना बनने के बाद क्षेत्रफल की दृष्टि से अब यह भारत का 19वां राज्य है।
  • उत्तराखण्ड राज्य को प्रायः कुमाऊँ-गढ़वाल हिमालय या पूरे भारत के सन्दर्भ मे मध्य हिमालय कहा जाता हैं। राज्य का आकार आयताकार है। पूर्व से पश्चिम तक राज्य की लम्बाई लगभग 358 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक चौड़ाई लगभग 320 किमी है।
  • उत्तर में वृहत्त हिमालय, पश्चिम में टौंस नदी, दक्षिण-पश्चिम में शिवालिक श्रेणियां, दक्षिण-मध्य एवं दक्षिण-पूर्व में तराई क्षेत्र तथा पूर्व में काली नदी राज्य की प्राकृतिक सीमा बनाते हैं।
  • पूर्व में नेपाल, उत्तर में हिमालय (तिब्बत) चीन, उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश तथा दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी राजनैतिक सीमा बनाते हैं।
  • राज्य की पूर्वी और उत्तरी सीमा अंतर्राष्ट्रीय है, जो कि सामरिक दृष्टि से अति संवेदनशील है।
  • राज्य में उत्तर से प्रवेश करने के लिए ट्रांस हिमालय द्वोत्र (जैंक्सर पर्वत श्रेणी) व महाहिमालय क्षेत्र में (हिमाद्री क्षेत्र) में अनेक दर्रे या पास या धुरा या खाल है।
  • प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित मैदान, भाभर व तराई से राज्य में प्रवेश करने के लएि शिवालिक श्रेणी में मोहन्डपास (देहरादून), तिम्ली (देहरादून), हरिद्वार, कोटद्वार, द्वारकोट आदि प्रमुख द्वार है।
  • राज्य के सबसे उत्तरी व दक्षिणी जिले क्रमशः उत्तरकाशी व ऊधमसिंह नगर तथा सबसे पूर्वी व पश्चिमी जिले क्रमशः पिथौरागढ़ व देहरादून हैं।
  • पौड़ी जिले के सीमाएं राज्य के 7 जिलों (नैनीताल, अल्मोड़ा, चमोली, रूद्रप्रयाग, टिहरी, देहरादून तथा हरिद्वार) को स्पर्श करती हैं।
  • चमोली तथा अल्मोड़ा की सीमाएं 6-6 जिलों को स्पर्श करती हैं। देहरादून की 4 जिलों (हरिद्वार, पौड़ी, टिहरी व उत्तरकाशी) को स्पर्श करती है।
  • राज्य में केवल 4 जिले (टिहरी, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर व अल्मोड़ा) ऐसे है, जिनकी किसी अन्य राज्य या देश से स्पर्श नहीं करती है। अर्थात ये पूर्णतः आंतरिक जिलें हैं।
  • सर्वाधिक लम्बे अंतराष्ट्रीय सीमाओं जिला या नेपाल से सर्वाधिक सीमा रेखा वाला जिला पिथौरागढ़ है।
  • चीन से भी सर्वाधिक सीमा रेखा वाला जिला पिथौरागढ़ है।

भौगोलिक विभाजन

धरातलीय विन्यास, स्तर शैलक्रम तथा उच्चावच स्वरूपों के आधार पर उत्तराखण्ड राज्य निम्नलिखित 8 भौगोलिक या भौतिक क्षेत्रों में बांटा जा सकता है-

1-गंगा का मैदानी क्षेत्र
  • यह क्षेत्र गंगा के समतल मैदानी क्षेत्र का हिस्सा है। इस क्षेत्र का निर्माण गंगा व आदि नदियों द्वारा प्रवाह में लाये गये महीन छोटे-छोटे कणों वाले अवसाद(मिट्टी, कीचड़ तथा बालू) से हुआ है। 
  • इस क्षेत्र में दो प्रकार की मिट्टी पायी जाती है-
  • 1.बांगर- पुरानी जलोढ़ मिट्टी
  • 2.खादर-नवीन जलोढ़ मिट्टी
  • इस क्षेत्र में होने वाली फसलें- धान,गेंहू,गन्ना आदि
  • इस क्षेत्र में दक्षिणी हरिद्वार का अधिकांश भाग,लक्सर,रुड़की आदि इसी क्षेत्र में आते हैं।
2-तराई क्षेत्र
  • यह क्षेत्र भी नदियों द्वारा लाये गये महीन कणों वाली अवसादों से बना हुआ है लेकिन इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होने के कारण यह भूमि ढलान(तराई) व दलदली है। 
  •  हरिद्वार में गंगा के मैदानी क्षेत्र के उत्तर में व पौड़ी गढ़वाल तथा नैनीताल जिलों के दक्षिण क्षेत्र व उ०सि०नगर जिले के अधिकांश क्षेत्र को तराई क्षेत्र कहा जाता है। 
  •  इस क्षेत्र का विस्तार- 20-30 KM
  •  उत्पादित फसलें- अधिक वर्षा होने के कारण अधिक पानी चाहने वाली फसलों का उत्पादन अधिक होता है जैसे- धान, गन्ना। 
  •  इस क्षेत्र में पातालतोड़ कुएँ पाये जाते हैं। 
  • यह क्षेत्र गंगा के समतल मैदानी क्षेत्र का हिस्सा है। इस क्षेत्र का निर्माण गंगा व आदि नदियों द्वारा प्रवाह में लाये गये महीन छोटे-छोटे कणों वाले अवसाद(मिट्टी, कीचड़ तथा बालू) से हुआ है। 
  • इस क्षेत्र में होने वाली फसलें- धान,गेंहू,गन्ना आदि
  • इस क्षेत्र में दक्षिणी हरिद्वार का अधिकांश भाग,लक्सर,रुड़की आदि इसी क्षेत्र में आते हैं।
3-भाबर क्षेत्र
  • इस क्षेत्र की भूमि उबड़-खाबड़ व मोटे-मोटे कंकड़, मिट्टी बालू युक्त है। 
  • इस क्षेत्र का निर्माण प्लीस्टोसीन युग में शिवालिक से उतरने वाली बेगवती नदियाँ द्वारा बहाकर लाये गये वजनी अवसादों (कंकड़, पत्थर, मोटे बाले) के निक्षेप से हुआ है।
  • यह क्षेत्र तराई क्षेत्र की उत्तर में व शिवालिक क्षेत्र के दक्षिण में है। 
  • इस क्षेत्र की चौड़ाई- 10-12 KM
  • इस इस क्षेत्र की मिट्टी कृषि के लिए अनुपयुक्त है। अतः यहाँ ज्यादातर जंगली झाड़ियाँ एवं अन्य प्राकृतिक वनस्पतियां पायीं जाती है। कहीं कहीं भूमि को कृषि योग्य बनाकर थोड़ी बहुत खेती भी की जाती है।
4-शिवालिक क्षेत्र
  • इस क्षेत्र में छोटी छोटी,ऊंची-नीची  पर्वत पहाड़ियां पायी जाती हैं।
  • इस क्षेत्र को बाह्य हिमालय या हिमालय का पाद भी कहा जाता है यह पर्वत श्रेणी हिमालय के सबसे बाहरी(दक्षिण) छोर पर स्थित है।
  • शिवालिक क्षेत्र की चौड़ाई- 10-50KM
  • इस क्षेत्र के पर्वत श्रृंखला की चोटियों की ऊंचाई- 700 से 1200 मीटर
  • इस श्रेणी का क्रम हिमालयी नदियों द्वारा जगह-जगह खंडित कर दिया गया है। जैसे-टिहरी, हरिद्वार में गंगा द्वारा, देहरादून में यमुना द्वारा आदि के द्वारा। अतः इस क्षेत्र में भूस्खलन तथा भारी कटाव के कारण गहरी घाटियां पायी जाती है।
  • खनिज की दृष्टि से यह क्षेत्र महवत्वपूर्ण है। देहरादून के मंदारसू, बाड़कोट तथा ऋषिकेश के पास डोलोमाइट चट्टानों से चूने मिलते है, जिसका उपयोग सीमेन्ट बनाने में किया जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अच्छे किस्म के बालू, संगरमर, जिप्सम, फॉस्फेटिक शैल आदि खनिज मिलते हैं।
  • शिवालिक क्षेत्र व भाबर क्षेत्र को अलग करने वाली फाल्ट लाइन को HFF-himalayan frunt galt (हिमालयन अग्र सीमा) कहा जाता है।
  • यह क्षेत्र हिमालय का सबसे नवीन भाग है जिसका निर्माण 1.75 लाख से 3 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ इसका निर्माणकाल मायोसीन युग से प्लाइस्टोसीन युग तक माना गया है। 
  • इस श्रेणी के नवीन होने के कारण इसमें जीवाश्म मिलते हैं। 
  • इस क्षेत्र में अधिकांश पर्यटन केंद्र हैं। 
  • इस क्षेत्र का ग्रीष्मकालीन तापक्रम 29.4 से 32.80 डिग्री सेंटीग्रेड है तथा शीतकालीन तापमान 4.40 से 7.20 डिग्री सेंटीग्रेड है।
  • औसत वार्षिक वर्षा- 200 से 250 cm
  • इस क्षेत्र के अंतर्गत दक्षिणी देहरादून,दक्षिण उतरी हरिद्वार, दक्षिण टिहरी, मध्यवर्ती पौड़ी, दक्षिण अल्मोड़ा, मध्यवर्ती नैनीताल व दक्षिण चम्पावत आदि 7 जिले आते हैं आते हैं। 
5-दून (द्वार) क्षेत्र

शिवालिक श्रेणियों के उत्तर और मध्य हिमालय क दक्षिण, अर्थात् शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच पाई जाने वाली प्रायः 24 से 32 किमी. चौड़ी व 350 से 750 मी. तक ऊंची चौरस व क्षैतिज घाटियों के पश्चिम व मध्य भाग में दून तथा पूर्व भाग में द्वारा कहा जाता है।

  • देहरा (देहरादून), कोठारी व चौखम (पौड़ी), पतली एंव कोटा (नैनीताल), पछवा, पूर्वी, चंदी व हर की आदि राज्य की प्रमुख दून हैं।
  • इस क्षेत्र में प्रवाहित आसन, सुसवा आदि नदियां लघु हिमालाय के दक्षिणी ढालों से ज्यादा मात्रा में उपजाऊ अवसाद लाकर निक्षेपित करती है।
  • दून क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 200-250 सेमी. है।
  • दून घाटियों में भूस्खलन की घटनाएं अधिक होती है। ये भूस्खलन प्रायः लघु या मध्य हिमालय श्रेणी में आते हैं।
6-लघु या मध्य हिमालयी क्षेत्र
  • आशिंक हिमाच्छादित होने के कारण इस क्षेत्र को हिमंचल या हिम का आंचल भी कहा जाता है। 
  • यह क्षेत्र दून क्षेत्र के उत्तर व वृहत हिमालयी क्षेत्र के दक्षिण में पाया जाता है यह क्षेत्र देहरादून, उत्तरकाशी, पौड़ी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, नैनिताल, अल्मोड़ा, चम्पावत आदि 9 जिलों तक विस्तारित है। 
  • इस क्षेत्र को चौड़ाई-70 से 100 km तक है व औसतन ऊंचाई 1200 से 4500 मीटर है। 
  • लघु हिमालय व शिवालिक क्षेत्र अलग करने वाली फाल्ट लाइन Maine boundary thrust(MBT मुख्य सीमा भ्रंश) कहलाती है। 
  • काल की दृष्टि से ये पर्वत प्री-कैस्बियन तथा पैलियाजोइक काल के चट्टानों से बने हैं, जिसमें स्लेट, चूना पत्थर, शैल, र्क्वाट्ज, नीस, ग्रेनाइट आदि चट्टानों की अधिकता पायी जाती है।
  • इस हिमालयी क्षेत्र से सरयू, रामगंगा, लधिया, नयार आदि नदियां निकलती हैं। 
  • इस क्षेत्र के दक्षिणी भाग में अनेक ताल पाये जाते हैं-नोकुछिया ताल, सातताल, भीमताल, खुरपाताल, पूनाताल,आदि। 
  • इस पर्वत श्रेणी के ढालों पर छोटे-छोटे घास के मैदान पाये जाते हैं, जिन्हें कुल्लू में थच, कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, सोनमर्ग, टनमर्ग) और उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता है। इन्हें पशुचारकों का स्वर्ग भी कहा जाता है।
  • घाटियों में धान, गेहूँ, ज्वार, मक्का एवं सब्जियों की खेती की जाती है। यहां अलकनन्दा की घाटी चुआ ज्वार के लिए प्रसिद्ध है तो अल्मोड़ा मक्का के लिए।
  • इस क्षेत्र का लगभग 45-60% भाग वनाच्छादित है इस क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय प्रकार के कोणधारी सघन वन पाये जाते हैं जिनमें चीड़, फर, देवदार, साल, प्रमुख हैं। 
7-वृहत् या उच्च हिमालयी क्षेत्र
  • यह क्षेत्र लघु हिमालय के उत्तर में व ट्रांस हिमालय के दक्षिण में स्थित है। 
  • इसकी चौड़ाई- 15-30 km
  • औसतन ऊंचाई-6000-7000m
  • इस क्षेत्र की सबसे ऊंची पर्वत श्रखंला – नन्दादेवी पश्चिमी(7817m)
  • यह क्षेत्र उत्तराखंड के 6 जिलों में फैला हुआ है- उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी,रुद्रप्रयाग, बागेश्वर व पिथोरागढ़।
  • इस क्षेत्र के विशाल हिमनद (ग्लेशियर) प्लाइस्टोसीन युग के हिमाच्छादन का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। इन हिमनदों को हिमानियां, बर्फ की नदियां व बमक आदि नामों से भी जाना जाता है। इन्हीं में से अनेक नदियों का जन्म हुआ है।
  • इस क्षेत्र ने विशाल हिमनद(ग्लेशियर) पाये जाते हैं-गंगोत्री, पिंडारी, मिलम ग्लेशियर। 
  • विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी इसी क्षेत्र में हैं। 
  • वृहत हिमालय व लघु हिमालय को अलग करने वाली फॉल्ट लाइन को Main central thrust (MCP मुख्य केंद्रीय भ्रंश) कहा जाता है. 
  • इस क्षेत्र में 12-13 हजार फीट से ऊपर प्राकृतिक वनस्पतियों का नितांत अभाव है तथा 12-10 हजार फीट के बीच झाड़ियां व  घास के मैदान पाये जाते हैं व 10 हजार फीट के नीचे फर,चीड़ साल, सागौन आदि के पेड़ पाये जाते हैं। 
  • यहां के मूल निवासी भोटिया लोग ग्रीष्मकालीन में इस क्षेत्र में जो,गेंहू, मक्का आदि की खेती करते हैं। 
  • यहाँ के निवासियों का प्रमुख कार्य पशुपालन है तथा इसके साथ ही हस्तशिल्प, खाल, जड़ी-बूटी, आदि से सम्बधित व्यवसाय भी करते हैं।
8-ट्रांस हिमालयी (टिबियान) क्षेत्र
  • ट्रांस का अर्थ होता है – के पार , अर्थात ‘ हिमालय के पार स्थित भू – भाग ‘ ट्रांस हिमालय कहलाता है इसका कुछ भाग उत्तराखंड में तथा शेष तिब्बत में स्थित है |
  • इस क्षेत्र की चौड़ाई- 20 से 30 km
  • औसतन ऊंचाई- 2500-3500m
  • इस क्षेत्र में मुख्यतः तीन जिले आते है- उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़। 
  • ट्रांस हिमालय व महान हिमालय के बीच फाल्ट लाइन(जो लाइन ट्रांस व महान हिमालय को अलग करती है)को”इंडो सांगको भ्रंश” कहते हैं। 


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1 thought on “उत्तराखण्ड की भौगोलिक संरचना”

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