उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन-2

Please Follow and Subscribe

उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन-2 – UKSSSC/UKPCS की परीक्षाओं की तैयारी हेतु उत्तराखण्ड सामान्य ज्ञान के अन्तर्गत उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन की पोस्ट उपलब्ध करवाई गई थी। उसी क्रम उस सीरीज का अगला भाग उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन-2 प्रस्तुत है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् कई राज्यों को पुर्नगठन हुआ। (उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन-2) कई नए राज्य अस्तित्व में आये, (उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन-2)किन्तु जन-जागरण के अभाव में पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया।

आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका

उत्तराखण्ड में समय-समय पर विीिज्ञन्न समस्याओं के निराकरण हेतु होने वाले आन्दोलनों में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मद्यनिषेद्य, खनन, पर्यावरण संरक्षण, आदि आंदोलनों में पर्वतीय महिला ने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर तथा कहीं कहीं अग्रणी बनकर अपनी कर्मठता, जुझारूपन, सतत संघर्षशीलता तथा संगठन शक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है।

उत्तराखण्ड आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका एवं बलिदान की घटनाएं निम्नवत् हैं

यों तो उत्तराखण्ड के प्रत्येक नगर एवं कस्बे में महिलाओं के प्रदर्शन हो रहे थे, किंतु पौड़ी आंदोलन में 7 अगस्त 1994 के दिन अनशनकारियों की सभा में पुलिस-प्रशासन द्वारा भयंकर लाठी चार्ज में घायल होने वालों में 8-10 महिलाएं थी।

खटीमा कांड

  • 01 सितंबर 1994 को कुमाऊँ के खटीमा कस्बे के तहसील प्रांगण में आयोजित भूतपूर्व सैनिकों की रैली में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पुलिस द्वारा निहत्थी जनता पर गोलियों की बौछार की गई। इस गोलीकांड में कई पुरुषों ने बलिदान दिया तथा अनेक महिलाएं घायल हो गईं। इस गोलीकांड ने आन्दोलन को बढ़ाने में आग में घी का काम किया।
  • 2 सितंबर 1994 को गढ़वाल मण्डल के शांत पर्वतीय नगर मसूरी खटीमा गोलीकांड तथा क्रमिक अनशन पर बैठे वरिष्ठ नागरिकों की गिरफ्तारी आन्दोलनकारियों के जुलूस पर पुलिस द्वारा गोलियां चलाने से कई अमूल्य उत्सर्ग हो गए। इनमें दो महिलाओं – श्रीमती बेलमती चौहान और श्रीमती हंसा धनाई ने अपना बलिदान देकर उत्तराखण्ड आन्दोलन को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया।
  • इन घटनाओं के कारण जो आन्दोलन कुछ ही स्थानों तक सीमित था, गढ़वाल और कुमाऊँ मंडलों के सभी जनपदों में फैल गया। सर्वत्र चक्काजाम, जुलूस, सभायें, प्रदर्शन, रैलियां, उत्तराखण्ड बन्द आदि के माध्यम से आन्दोलन तीव्र होने लगा।
  • हल्द्वानी, उत्तरकाशी, चमोली, कोटद्वार, अल्मोड़ा, नैनीताल जैसे नगरों के साथ-साथ दूरस्थ छोटे-छोटे गांवो में राज्य प्राप्ति आन्दोलन सड़कों पर उतर गया। प्रत्येक स्थान पर छात्र, शिक्षक, कर्मचारी, व्यावसायिक वर्ग के साथ-साथ महिलाओं की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण रही।

मुजफ्फरनगर कांड

  • 2 अक्टूबर, 1994 को गाँधी जयंती के अवसर पर दिल्ली प्रशासन की अनुमति से आयोजित उत्तराखण्ड रैली में उत्तराखण्ड के दोनों मंडलों से बसों द्वारा सत्याग्राही दिल्ली रवाना हुए, जिनमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व अधिक था। देहरादून, चमोली, गोपेश्वर तथा श्रीनगर से जाने वाली बसों को स्थानीय प्रशासन द्वारा मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रात्रि ढाई बजे रोक दिया गया। तलाशी के नाम पर पुरुषों को उतार दिया गया और महिलाओं के साथ अभद्रता की गई।
  • हिंसा के ताण्डव के साथ अनेक महिलाओं का शीलहरण किया गया। इस घटना ने पर्वतीय महिलाओं की अस्मिता को तार-तार करके लोकतंत्र को कंलकित कर दिया। रामपुर तिराहा में अनेक व्यक्तियों को गोलियों से भून दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप आंदोलन उग्र हो गया। 3 अक्टूबर को देहरादून में निर्भीक महिलाओं ने निषेधाज्ञा तोड़कर शहीदों की शव यात्रा में सरकार विरोधी नारे लगाकर प्रदर्शन किया।
  • देवभूमि की वीर-प्रसूता महिलाएं आए दिन अपने संगठनों को मजबूत करने में प्रवृत्त हो गईं। महिलाओं ने दरांतियों के साथ तथा कहीं कहीं वीर-वाद्य, ढोल, नगाड़े, तुरही, रणसिंघे आदि के साथ प्रदर्शन किए। आन्दोलन की चिंगारी से सारा उत्तराखण्ड सुलग उठा। इसी मध्य 10 नवंबर, 1995 श्रीयंत्र टापू (अलकनन्दा नदी) श्रीनगर, गढ़वाल में भी दो युवकों ने बलिदान दिया।
  • पुलिस और प्रशासन के अत्याचार बढ़ते रहे, लेकिन इसी अनुपात में आन्दोलन भी उग्र रुप धारण करता गया। महिलाएं आन्दोलन की विशेषता यह थी कि यह पूर्णतया गैर राजनीतिक रहा। ज्ञापन दिए जाते रहे। समाज के सभी वर्गों की भूमिका जहां आन्दोलन को विशिष्ट बना रही थी, वहीं नेतृत्व का अभाव भी हो जाता था। इन अवसरों पर महिलाएं आगे जाकर नेतृत्व संभाल लेती थी।
  • रोज धरने पर बैठना, पुलिस की लाठी खाना और स्वेच्छा से गिरफ्तारियां देना, कहीं भी उत्तराखण्डी महिलाएं पीछे नहीं रही। राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी, 1995 को गणतंत्र दिवस की परेड में सुरक्षा घेरे को पार कर जुझारु नेत्री स्व. कौशल्या डबराल तथा श्रीमती सुशीला बलूनी के नेतृत्व में पैंतालीस महिला व नवयुवकों का दल सक्रिय हुआ।
  • राष्ट्रपति के भाषण में मध्य में ’जय उत्तराखण्ड, जय भारत अखण्ड’ का इश्तिहार हुईं। स्व. कौशल्या डबराल तथा श्रीमती बलूनी के राज्य आन्दोलन में प्रदत्त योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

खैट अनशन

  • जिला टिहरी में भागीरथी व भिलंगना नदी के उत्तर स्थित पौराणिक पर्वत ’’खैट’’ लगभग दस हजार फीट की ऊँचाई वाला पर्वत है। पौड़ी श्रीयंत्र टापू के अनशनों का परिणाम देखकर दिवाकर भट्ट ने इस दुर्गम पर्वत पर सड़कमार्ग के खत्म होने के बाद कम से कम 6 किमी. की खड़ी चढ़ाई तय कर कर अनशन शुरू कर दिया।
  • फील्ड मार्शल के स्वयं अनशन पर बैठने से उनके समर्थक अपने निजी हथियारों के साथ सुरक्षा में तैनात हो गए। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए गृहमंत्री एम कामसन ने फैक्स भेजकर गृह मंत्रालय की ओर से उत्तराखण्ड राज्य के संबंध में औपचारिक वार्ता का निमंत्रण दिया।
  • 15 जनवरी 1996 को केन्द्रीय गृहमंत्री कामसन और विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने स्वयं जंतर मंतर पहुंचकर, 16 एवं 20 जनवरी को गृह मंत्रालय के आश्वासन देकर 32 दिनों का अनशन समाप्त करवाया।
  • खैट अनशन का कोई सकारात्मक हल तो नहीं निकला लेकिन इसकी मुख्य उपलब्धि थी कि सरकार ने गंभीरता से पृथक राज्य मुद्दे को लिया और सकारात्मक औपचारिक पहल की शुरूआत केन्द्र सरकार ने की।

उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण

  • वर्ष 1999 में भी राज्य गठन की शीघ्र मांग की कवायद जारी रही।
  • दिसम्बर माह में उक्रांद ने 13 जिलों मुख्यालायों पर सांकेतिक धरना देकर प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा।
  • दिसम्बर माह में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने संशेधन के साथ उत्तराखण्ड राज्य गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
  • वर्ष 2000 के प्रारम्भ देहरादून में विशाल रैली का आयोजित की गई।
  • 2 फरवरी को रेलगाड़ियों केा रोककर राज्य निर्माण की ढिलाई पर रोष व्यक्त किया गया। अन्ततः बाजपेयी नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने उत्तरांचल राज्य निर्माण विधेयक 2000 उत्तर प्रदेश विधानसभा को भेजा।
  • इस बार राज्य सरकार ने सहमति व्यक्त करते हुए प्रस्ताव केन्द्र को भेज दिया। इस प्रकार 27 जुलाई 2000 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से अधिनियमित हुआ। इस प्रकार साठ दशकों से चली आ रही पृथक पर्वतीय राज्य की मांग का स्वप्न साकार हुआ।
  • अतः नेतृत्व की अदूरर्शिता और नेताओं में महानायक बनने की महत्वकांक्षा के कारण ही असंख्य जाने और महिलाओं से दुर्व्यवहार होने के बाद ही 6 वर्ष बाद 9 नवम्बर 2000 को पृथक पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड अस्तित्व में आया।

पृथक राज्य गठन की मांग से सम्बधित संस्थाएं

क्रम सं         संस्थागठन का वर्ष
1कुमाऊँ परिषद     1916
2हिमालय सेवा संघ 1938
3गढ़वाल जागृति संस्था         1939
4पर्वतीय विकास जन समिति              1950
5पर्वतीय, राज्य परिषद         1950
6कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा            1970
7पृथक पर्वतीय राज्य परिषद             1973
8उत्तराखण्ड यूथ काउन्सिल 1976
9उत्तराखण्ड क्रांति दल        1979
10उत्तराखण्ड उत्थान परिषद 1988
11उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति      1989
12उत्तराखण्ड मुक्ति मोर्चा      1991
13संयुक्त उत्तराखण्ड राज्य मोर्चा          1994
14उत्तराखण्ड पीपुल्स फ्रन्ट    1994

Please Follow and Subscribe

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *