उत्तराखण्ड: जनसंख्या (2011 जनगणना) – I

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उत्तराखण्ड: जनसंख्या (2011 जनगणना) – I : उत्तराखण्ड की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उत्तराखण्ड सामान्य ज्ञान सीरीज के अंतर्गत “उत्तराखण्ड: जनसंख्या (2011 जनगणना) – I” हिन्दी में उपलब्ध है। उत्तराखण्ड: जनसंख्या (2011 जनगणना) से सम्बधित कई प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। “उत्तराखण्ड: जनसंख्या (2011 जनगणना) – I” का पहला भाग इस पोस्ट के माध्यम से उपलब्ध है। दूसरे भाग में साक्षरता दर, लिंगानुपात आदि के बारे में जल्द ही पोस्ट किया जाएगा।

जनसंख्या संकेंद्रण

किसी भी प्रदेश का जनसंख्या-विन्यास का तत्वात्मक धुरी है जिसके आधार पर स्थानीय संसाधनों का परिकलन एवं विभिन्नताओं का विश्लेषण सरलता से किया जा सकता है। उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय प्रदेश का जनसंख्या प्रारूप, प्रोदशिक विशिष्टताओं और मानवीय क्रियाकलापों का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करता है। इस प्रदेश का धरातलीय स्वरूप और जलवायु अन्य तथ्यों की अपेक्षा जनसंख्या-वितरण पर अधिक प्रभाव डालते हैं। उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय प्रदेश का जनसंख्या प्रारूप, प्रोदशिक विशिष्टताओं और मानवीय क्रियाकलापों का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करता है। इस प्रदेश का धरातलीय स्वरूप और जलवायु अन्य तथ्यों की अपेक्षा जनसंख्या-वितरण पर अधिक प्रभाव डालते हैं।

क- उच्चतम संकेंद्रण वाले क्षेत्रः प्रदेश के पूर्णतया मैदानी जनपद, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर के अतिरिक्त जनपद देहरादून के मैदानी भाग एवं तराई भाबर क्षेत्र जहां उच्चतम जनसंख्या संकेंद्रण वाले क्षेत्र है।
ब- मध्यम संकेंद्रण वाले क्षेत्रः प्रदेश में बहने वाली सभी नदियों की मैदानोन्मुख घाटियाँ, मध्यम संकेंद्रण का स्वरुप प्रदान करती है।
स- जनसंख्याविहीन क्षेत्रः महाहिमालय की श्रृंखला एवं उससे संलग्न हिमाच्छादित घास के मैदान (बुग्याल), सघन वनाच्छादित क्षेत्र तथा 45 डिग्री से अधिक ढाल वाले भाग जिन्हें स्थानीय भाषा में घाड़, चंघाड़ या चाँठ कहा जाता है, सर्वथा जनसंख्याविहीन है।

उत्तराखण्ड में जनगणना का इतिहास

  • प्रदेश में अधिकृत जनगणना सर्वप्रथम वर्ष 1901 में की गई थी। तब से अब तक प्राकृतिक आपदाओं, महामारियों, अकालों, रुढ़िवादी सामाजिक रीतिरिवाजों, सामान्य चिकित्सा सुविधाओं का अभाव तथा पुरुष वर्ग का रोजगार की खोज में देश के मैदानी भागों की ओर पलायन आदि के कारण जनसंख्या वृद्धि के क्षीण रुप का अनुभव किया गया है।
  • 1911 से 1921 के दस वर्षों में दशकीय परिवर्तन ऋणात्मक रहा है। इस अवधि में राज्य के पर्वतीय भागों में भीषण अकाल एवं महामारी का प्रकोप रहा, जिसमें हजारों व्यक्ति काल-कवलित हो गए, साथ ही इस क्षेत्र के सैकड़ों युवाओं का प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) में अपने प्राणों का बलिदान देना भी जनसंख्या ह्नास का कारण रहा है।
  • 1951 के दशक में द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1944) में भी पर्वतीय सैनिकों का प्राणोत्सर्ग के कारण पूर्व के दशक (1931-1941) की अपेक्षा दशकीय परिवर्तन में कमी देखी गई है।
  • जनसंख्या वृद्धि का उच्चतम रुप 1951 से 1991 तक के चार दशकों में दृष्टिगोचर होता है।
  • इसका मुख्य कारण चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि, यातायात के साधनों का विकास, कृषि एवं सिंचित भूमि के क्षेत्रफल में वृद्धि तथा प्रदेश के कतिपय व्यापारिक केंद्रो में देश के विभाजन के फलस्वरुप आये व्यक्तियों का स्थायी निवास करना है।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका के साधनों की कमी के फलस्वरुप पलायन बढ़ती प्रवत्ति के कारण यहां जनसंख्या वृद्धि दर घटती पाई गई है, जबकि तराई-भाबर मे रोजगार एवं आवश्यक सुविधाओं के अपेक्षाकृत विकसित होने के कारण अन्य क्षेत्रों से आकर लोगों के बसने की गति बढ़ती जा रही है। फलस्वरुप वृद्धि दर में भी धनात्मक प्रभाव देखा जाता है।

जनसंख्या 2011 जनगणना

उत्तराखण्ड राज्य की जनगणना 2011 की कार्य योजनाओं का प्रारम्भ भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त, भारत सरकार तथा उत्तराखण्ड शासन द्वारा गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से किया गया। यह जनगणना 2001 के पश्चात् 15वीं जनगणना है जिसे 31 मई, 2013 को जारी किया गया।

जनसंख्या वितरण – 2011

क्र.स. जनपदव्यक्तिपुरुषमहिलादशकीय वृद्धि दर
1उत्तरकाशी33008616859716148911.89
2चमोली3916051939911976145.74
3टिहरी गढ़वाल3916052979863209452.35
4देहरादून169669489219980449532.33
5पौड़ी गढ़वाल687871326829360442-1.32
6रूद्रप्रयाग2422851145891276966.53
7पिथौरागढ़4834392393062441334.58
8अल्मोड़ा622506291081331425-1.28
9नैनीताल95460549366646093925.13
10बागेश्वर2598981243261355724.18
11चम्पावत259648
131125
12852315.63
12ऊधमसिंहनगर164890285878379011933.45
13हरिद्वार1890422100529588512730.63
कुल योग100868925137773494851918.80
  • उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि जनगणना वर्ष 2011 मे प्रदेश की जनसंख्या 1,00,86,292 है।
  • जिसमें पुरुषों की संख्या 5137773 (50.93 प्रतिशत) तथा महिलााओं की संख्या 49,48,519 (49.07 प्रतिशत) है।
  • राज्य की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का 0.83 प्रतिशत है जबकि क्षेत्रफल के दृष्टि से प्रदेश, देश के कुल क्षेत्रफल का 1.69 प्रतिशत है।
  • जनसंख्या वितरण तालिका के अुनसार सर्वाधिक जनसंख्या 18,90,422 (प्रदेश का 18.74 प्रतिशत) हरिद्वार तथा न्यूनतम जनसंख्या 424,285 (प्रदेश का 2.40 प्रतिशत) जनपद रूद्रप्रयाग में निवास करती है।
  • एक तरफ हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर तथा देहरादून जैसे मैदानी जनपदों की कुल जनसंख्या (10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले जनपद) 35,39,324 लाख है जबकि शेष दस पर्वतीय जनपदों की जनसंख्या 65,47,568 लाख है।
  • तीन मैदानी जनपदों की दशकीय वृद्धि दर जहां 31.33 प्रतिशत है, वहीं पर्वतीय जनपदों की दशकीय वृद्धि दर 12.76 प्रतिशत है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में 2001-2011 के मध्य जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर 18.80 प्रतिशत रही है। जो इसी अवधि में राष्ट्रीय औसत (17.70 प्रतिशत) से अधिक है।
  • तालिक के अनुसार पौड़ी गढ़वाल (-1.28) की दशकीय वृद्धि दर शून्य से नीचे रही है। इसी अवधि की शहरी जनसंख्या दशकीय वृद्धि दर 39.94 तथा ग्रामीण जनसंख्या की 11.52 प्रतिशत रही है।
  • जनंसख्या का प्रतिवर्ग किलोमीटर घनत्व जहाँ वर्ष 2001 में 159 था, वहीं 2011 मंे बढ़कर 189 हो गया है। अर्थात् पिछले दशक में 30 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है।

जनसंख्या घनत्व

क्र.स. जनपद20012011
1हरिद्वार613801
2उधमसिंहनगर486649
3देहरादून415549
4अल्मोड़ा201198
5नैनीताल179225
6टिहरी गढ़वाल166170
7पौड़ी गढ़वाल131129
8चम्पावत127147
9रूद्रप्रयाग115122
10बागेश्वर110116
11पिथौरागढ़6568
12चमोली4649
13उत्तरकाशी3741
उत्तराखण्ड159189
जनसंख्या घनत्व

तालिका से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2011 कर जनगणना के अनुसार, हरिद्वार सर्वाधिक घनत्व (801) तथा उत्तरकाशी न्यूनतम घनत्व (41) वाला जनपद है। वर्ष 2011 की जनगणना की अपेक्षा वर्तमान में प्रदेश के सभी 13 जनपदों में सर्वाधिक वृद्धि हरिद्वार में तथा निम्नतम (-3) अल्मोड़ा जनपद में पाई गया है।


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