उत्तराखण्ड के वन संसाधन: वनस्पति, प्राकृतिक वातावरण का प्रमुख, अचल एवं सजीव तत्व है। प्राचीनकाल से ही मानव और वानस्पतिक सम्पदा का घनिष्ठ सम्पदा रहा है। वन संपदा से ही वायु-प्रदूषण पर नियत्रंण, वर्षा की मात्रा का स्थायित्व एवं भूक्षरण पर नियत्रंण होता है। UKSSSC/UKPCS की प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तराखण्ड के वन संसाधन से प्रश्न पूछे जाते हैं जिसकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए पूरी पोस्ट पढ़े।
उत्तराखण्ड के वन संसाधन: वनों का विस्तार
600-1200 मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में वनों का प्रतिशत 16.3 तथा 1200 से 1800 मीटर वाले क्षेत्रों में 22.3 प्रतिशत है, जबकि 1800-300 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में, सर्वाधिक (28.8 प्रतिशत) वनक्षेत्र है, किंतु 3000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में संपूर्ण प्रदेश का न्यूनतम प्रतिशत केवल 7.5 रह जाता है।
वनों का वितरण
उत्तराखण्ड के वनों का निम्नानुसार वर्गीकरण किया जाता है
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
इन वनों का विस्तार सिंधुतल से 300 से 600 मीटर के मध्य तराई-भाबर तथा शिवालिक श्रेणियों में है, जिनमें प्रतिवर्ष पतझड़ होता है। इनमें मूल्यवान प्रजाति के वृक्ष है जैसे साल, शीशम, सैन, सागौन, सेमल, हल्दू, धौड़ी, बहेड़ा, जामुन, रोहिणी, तुन, शहतूत आदि के वृक्ष पाये जाते हैं।
हिमालयी उपोष्ण चीड़ के वन
चीड़ के वृक्षों के प्रधानता वाले इन वनों का विस्तार मुख्यतः समुद्रतल से 700 से 1400 मीटर की ऊँचाई वाले पहाड़ी ढालों में है। चीड़ नुकीली पत्ती वाला वृक्ष है, जो 20 से 30 मीटर की ऊँचाई का होता है। इसकी लकड़ी लाल, भूरी होती है। इस वृक्ष से लीसा प्राप्त होता है।
हिमालयी शीतोष्ण सदाबहार वन
- इन वनों का विस्तार 1500 मीटर से 2800 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में अधिक मिलता है। इन वनों का मुख्य प्रजातियां बांज तथा बुरांस हैं। कहीं-कहीं देवदार, कैलख् राई, यूरिण्डा आदि की प्रजातियां भी पाई जाती हैं।
- इन वनों में अधिकांश वृक्षों की लंबाई 15 मीटर से भी कम होती है लेकिन तने मोटे होते हैं। इन वृक्षों की पत्तियां चौड़ी व मोटी होती है। यह सदैव हरे-भरे रहते हैं तथा इनकी लकड़ी मजबूत व टिकाऊ होती है।
एल्पाइन वन क्षेत्र
- इन वनों का विस्तार 2800 से 3800 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में मिलता है। यहां देवदार, स्प्रूस, सिल्वर फर, ब्ल्यूपाइन आदि नुकीली पत्ती के वृक्ष तथा भोजपत्र वृक्ष मुख्य रुप से पाये जाते हैं।
- इन वृक्षों की औसत ऊँचाई 30 मीटर तक तथा मोटाई 3 से 5 मीटर होती है। इनकी लकड़ी सुगंधित, भूरी-पीली तथा मुलायम और टिकाऊ होती है। देवदार जैसे वृक्षों से सुगंधित तेल भी निकाला जाता है।
घास के मैदान
- मध्य हिमालय में 3800 से 4200 मीटर वन रेखा और हिमरेखा के बीच की ऊँचाई वाले क्षेत्र जलवायु की कठोरता के कारण वृक्षविहीन है। किंतु इन वन क्षेत्रों में वनों के स्थान पर छोटी-छोटी घास उग आती हैं, जिन्हें यहां बुग्याल या पंयार नामों से जानते है।
- अधिक ऊँचाई स्थित इन घास के मैदानों का मीडो व अल्पाइन पाश्चर भी कहा जाता है। राज्य में अल्पाइन घास के मैदानी क्षेत्रों का विस्तार उत्तरकाशी तथा चमोली में फैला हुआ है।
- शीतऋतु में यह समस्त ढलुआँ घास के मैदान हिम से ढक जाते हैं। मई से अक्टूबर के मध्य तक इन क्षेत्रों में मखमली घास व छोटे फूलों का दृश्य मंत्र-मुग्ध कर देता है।